मैकल पारवती क्षेत्रो में स्थित यह भव्य तथा पुरातन मंदिर ८-११ वि सदी के बीच बना है। यह मंदिर नाग वंश के राजा रामचन्द्र के जीवनकाल में बनवाया गया।
मुख्य देवता - यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। भगवान शिव के को शिवलिंग रूप में यहां देखा जाता है। इसके अलावा, भगवान विष्णु और उनके अवतार , भगवान गणेश , उमा - महेश्वर , नरसिंह , वामन , नटराज , कृष्ण, काल भैरव और सूर्य भीहै ।
वास्तुकला - पूरा मंदिर भरे जंगलों के बीच में स्थित एक पत्थर की संरचना है । इस मंदिर को बारीक नक्काशी और मूर्तियों के साथ सजाया गया है । नक्काशी और मूर्तिकला खजुराहो मंदिरों के समान है। मंदिर के प्रवेश द्वार पर गंगा और यमुना का चित्र है ।
मुख्य मंदिर दो भागों में विभाजित किया जा सकता है। मुख्य मंडपम में शिवलिंग है , जो एक ऊँचे मंच पर स्थित है। प्रभु पूर्व मुखी होकर विराजते है। मुख्य मंडपम में ऊँची छतों के साथ साथ केंद्र में स्थित चार स्तंभ भी है।
इस मंदिर की वास्तुकला, विशेष रूप से शिखर ओडिशा वास्तुशैली दर्शाते है। बाहरी सीमा में बांस , र्जुन और गुलमोहर के पेड़ के साथ सजाया उद्यान है।
यह मंदिर एक मूर्तिकला में रुचि रखने वाले लोगों , ललित कला और पुरातत्व में रूचि रखने वालो के लिए यात्रा करना अनिवार्य है ।
भोरमदेव महोत्सव मार्च के महीने के अंतिम सप्ताह में हर साल मनाया जाता है। इस मंदिर की यात्रा करने के लिए यह सबसे अच्छा समय है ।
पता - कवर्धा , छत्तीसगढ़ 491,995 भारत
दिशा निर्देश -
सड़क मार्ग - यह मंदिर कवर्धा से लगभग 21 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है और नदी सकरी के तट पर है । यह रायपुर के उत्तर में स्थित है और अच्छी परिवहन सुविधाएं उपलब्ध हैं। राष्ट्रीय राजमार्गों 6,16 और 43 से सभी प्रमुख भारतीय शहरों को जोड़ने का काम करती है ।
रेल द्वारा - रायपुर और बिलासपुर पास के रेलवे स्टेशन हैं।
हवाई जहाज से - रायपुर घरेलु हवाई अड्डा निकटतम हवाई अड्डा है।
अन्य स्थानों की यात्रा -
कांकेर पैलेस
राजपुरी झरना
कैलाश गुफाएं
मैत्री बाग
No comments:
Post a Comment