रहस्यमई जटार देऊल - आसनसोल , पश्चिम बंगाल

१९ वि सदी के बीच, अंग्रेज़ो द्वारा  एक रहस्यमई मीनार जैसी संरचना की खोज , पश्चिम बंगाल के आसनसोल क्षेत्र में हुई।  यह सुंदरबन के बीच है।  इतिहासकारो के अनुसार यह मंदिर ११ वि या १२ सदी का है।  आश्चर्य की बात है की यह संरचना आज तक समय और प्रकृति की कसौटी पर खरी उतरी है।

कुछ इतिहासकार यह मानते है की सेन काल में यह एक शिव मंदिर था और यहाँ महादेव को जटा (उनके केशो की वजह से) के नाम से जाना जाता है।  पर कुछ ये मानते है की यहाँ पाली राज्य में यहाँ एक बौद्ध मंदिर था। इस मंदिर के निर्माण के बारे में निर्णायक रूप में कुछ कहा नहीं जा सकता है और शायद यही रहस्यमई बात इस मंदिर के रोमांच को बढाती है।

वास्तुकला  - मंदिर की पूरी संरचना मिटटी की बानी है।  आश्चर्यवश यह मंदिर बंगाल की वास्तुकला को नहीं बल्कि ओडिशा की वास्तुशैली को दर्शाती है।  मिटटी से बने बर्तन, प्रतिमाये और अन्य वस्तुए खोजकर्ताओं को प्राप्त हुई है।  इस मंदिर की ऊंचाई करीब ७० फुट है और इसकी आधारशिला २५*२५ की चौकुन आकृति है।
ईटो से बानी एक सीढ़ी मुख्य कक्षा तक ले जाती है जो चौकों आकर की है और मिटटी से बना एक शिव लिंग भी उसी कक्ष में है।  जब इस मंदिर के अवशेषों की खोज की जा रही थी तब पत्थर से बानी नक्काशियों के साथ ही साथ कुछ ताम्बे के सिक्के भी मिले जिनके ऊपर हाथियों की कलाकृति है।
इस मंदिर का शिकार घने वनो के बीच भी साफ़ दिखाई पड़ता है।  यह मंदिर एक लम्बे समय से परित्यक्त है परन्तु हाल ही में इसे भारत के पुरातत्व विभाग ने संरक्षित स्थल के रूप में घोषित किया है।

रहस्यमई जटार देऊल मंदिर 

जटार देऊल पुरातत्व सर्वेक्षण मंडल

संरक्षण  - कोल्कता के इतिहासकार और पुरात्तव विभाग पूर्ण रूप से इस मंदिर के संरक्षण के कार्य में जुड़े हुए है और खोजकर्ता इस मंदिर के अन्य भागो का खोज कर रहे है। दुर्भाग्यवश समय के साथ साथ चुना या पानी जमा होने से मंदिर की दीवारे ढह रही है।

त्यौहार/पूजा  - शिवरात्रि के दिन यहाँ एक भव्य पूजा का आयोजन किया जाता है जिसमे घोड़ो की दौर की जाती है।  हज़ारो लोग शिव पूजा करने यहाँ जमा होते है।  इस मंदिर में प्रतिदिन पूजा होती है।

दिशा निर्देश  - जटार देऊल सुंदरबन के बीच चावल के खेतो से घिरा है।  निश्चित ही यहाँ पोहोचना उतना आसान नहीं होता।  एक पुरे दिन के दौरे में इस स्थान का भ्रमण किया जा सकता है।
सेआलदह से ट्रैन से मथुरापुर (करीब २ घंटे) फिर यहाँ से ऑटो या बस रेडिघि तक और फिर कंकंदिघी तक।
कोल्कता के  डायमंड हारबर बस/ट्रैन लेकर रेडिघि तक।
कंकण दिघी से मोटर वैन जटार देऊल तक ले जाती है।

निकट के शहर  - जयनगर -मजिलपुर ,कळोसाशी नस्कर , माग्रा हाट

सन्दर्भ स्थल  -ASI unearths untold temple story by Sebanti Sarkar, The Telegraph, Kolkata, 16 Feb.

translated by - Ananya
Image Courtesy - Google Images

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