मदुरै में स्थित पत्थरो से बना नरसिम्हा मंदिर
नाम : योग नरसिम्हा मंदिर ओथकडई मदुरै
स्थान : यानमलै , ओथकडई मदुरै तमिल नाडु
मुख्य देवता : नरसिम्हा और महालक्ष्मी महालक्ष्मी को यहाँ नर्सिंघावल्ली के नाम से जानते है
इतिहास करीब ५००० वर्ष – यानमलै पर्वत पर पत्थरो से बना यह मंदिर है।
विभिन्न्य शिलालेख के इतिहास को दर्शाते है।
विशेषतायें - इस पर्वतशिला को नरसिम्हा का रूप माना जाता है। इसलिए यहाँ कोई और पताका (कोडी मरम ) नहीं है। पूर्णिमा के दिन गिरिवालम एक विशेष समारोह है। साधारणतः नरसिम्हा मंदिरो में उत्सव मूर्ति श्रीनिवास की होती है पर यह केवल एक मंदिर है जहा मूर्ती नरसिम्हा की ही है। नरसिंह अवतार प्रदोष के समय (४.३० से ५. ३० तक ) कृष्णा पक्ष चतुर्थी पर हुआ। ज्ञान अर्जन तथा व्यवसाय में उन्नति करने के लिए अभिषेक किया जाता है
मंदिर दौरे की कालावधि : सुबह ७ से १२ और दोपहर ४ से ८
दूरध्वनी क्रमांक : +91-9842024866
दिशा निर्देश : मत्तवानी से मिनी बस लेकर ओथकडई पोहोचे
मत्तवानी बस स्थानक से ओथकडई तक रिक्शा
करीब १५०/- रुपये भाड़ा ट्रैन से और ८० /- बस से
इतिहास : स्थल पुराण के अनुसार संत रोमासा ने नरसिंह की मूर्ति इस पर्वत की गुफा में स्थापित की थी। ब्रह्मांड पुराण के उत्तर काण्ड के ८७ अध्याय में यह बताया है की ऋषि ने पद्म ठगदम नाम के कुंड में ध्यान किया था। यह कुंड कमल के फूलो से भरा था। यनािमलै में ऋषि चाहते थे की देव नरसिम्हा अवतार में प्रकट हो। भगवान उग्र अवतार में ए और उनकी ऊर्जा से असहनीय ताप निकल रहा था। दूसरे देवता गजगिरी क्षेत्र पोहोचे और नरसिंह से शांत होने की प्रार्थना की। देवो ने प्रल्हाद से और महालक्ष्मी से सहायता मांगी। देवी लक्ष्मी फिर उन्हें नर्सिंघ्वल्ली ले गयी जहा वे योग नरसिंह नाम से जाने जाते है। भगवान ने फिर ऋषि की आकांशा पूर्ण की।
निकट के मंदिर - कोडी कुलम (ज्योतिष्कुडी ) वेद नारायण विष्णु मंदिर यहाँ से ३ किमी पर है। जब श्रीरंगम पर हमला हुआ तब एक पुरोहित ने मंदिर की रक्षा के लिए विग्रह को इस स्थान पर लाया। हज़ारो लोग इस दौरान मर गए पर पिल्ला लोकचर्या विग्रो को लेकर भागने में सफल हुए। एक दिन उन्हें सैनिको के आने की आवाज़ सुनाई दी। यह सोच कर की सैनिक विग्रह ले जायेंगे लोकचर्या पर्वत पर चढ़ने लगे। अचानक वे गिर गए और उनकी मृत्यु हो गयी। इस समय भी उन्होंने विग्रहो को पकडे रखा और उन्हें नष्ट होने से बचाया।
इस मंदिर में लोकचर्या की भी तीर्थ स्थान है पर इस मंदिर को तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है।
अधिक जानकारी के लिए संपर्क करे - वीर राघव भट्टर 94426 22181
translated by Ananya
नाम : योग नरसिम्हा मंदिर ओथकडई मदुरै
स्थान : यानमलै , ओथकडई मदुरै तमिल नाडु
मुख्य देवता : नरसिम्हा और महालक्ष्मी महालक्ष्मी को यहाँ नर्सिंघावल्ली के नाम से जानते है
इतिहास करीब ५००० वर्ष – यानमलै पर्वत पर पत्थरो से बना यह मंदिर है।
विभिन्न्य शिलालेख के इतिहास को दर्शाते है।
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Lord Narasimha Madurai |
विशेषतायें - इस पर्वतशिला को नरसिम्हा का रूप माना जाता है। इसलिए यहाँ कोई और पताका (कोडी मरम ) नहीं है। पूर्णिमा के दिन गिरिवालम एक विशेष समारोह है। साधारणतः नरसिम्हा मंदिरो में उत्सव मूर्ति श्रीनिवास की होती है पर यह केवल एक मंदिर है जहा मूर्ती नरसिम्हा की ही है। नरसिंह अवतार प्रदोष के समय (४.३० से ५. ३० तक ) कृष्णा पक्ष चतुर्थी पर हुआ। ज्ञान अर्जन तथा व्यवसाय में उन्नति करने के लिए अभिषेक किया जाता है
मंदिर दौरे की कालावधि : सुबह ७ से १२ और दोपहर ४ से ८
दूरध्वनी क्रमांक : +91-9842024866
दिशा निर्देश : मत्तवानी से मिनी बस लेकर ओथकडई पोहोचे
मत्तवानी बस स्थानक से ओथकडई तक रिक्शा
करीब १५०/- रुपये भाड़ा ट्रैन से और ८० /- बस से
इतिहास : स्थल पुराण के अनुसार संत रोमासा ने नरसिंह की मूर्ति इस पर्वत की गुफा में स्थापित की थी। ब्रह्मांड पुराण के उत्तर काण्ड के ८७ अध्याय में यह बताया है की ऋषि ने पद्म ठगदम नाम के कुंड में ध्यान किया था। यह कुंड कमल के फूलो से भरा था। यनािमलै में ऋषि चाहते थे की देव नरसिम्हा अवतार में प्रकट हो। भगवान उग्र अवतार में ए और उनकी ऊर्जा से असहनीय ताप निकल रहा था। दूसरे देवता गजगिरी क्षेत्र पोहोचे और नरसिंह से शांत होने की प्रार्थना की। देवो ने प्रल्हाद से और महालक्ष्मी से सहायता मांगी। देवी लक्ष्मी फिर उन्हें नर्सिंघ्वल्ली ले गयी जहा वे योग नरसिंह नाम से जाने जाते है। भगवान ने फिर ऋषि की आकांशा पूर्ण की।
निकट के मंदिर - कोडी कुलम (ज्योतिष्कुडी ) वेद नारायण विष्णु मंदिर यहाँ से ३ किमी पर है। जब श्रीरंगम पर हमला हुआ तब एक पुरोहित ने मंदिर की रक्षा के लिए विग्रह को इस स्थान पर लाया। हज़ारो लोग इस दौरान मर गए पर पिल्ला लोकचर्या विग्रो को लेकर भागने में सफल हुए। एक दिन उन्हें सैनिको के आने की आवाज़ सुनाई दी। यह सोच कर की सैनिक विग्रह ले जायेंगे लोकचर्या पर्वत पर चढ़ने लगे। अचानक वे गिर गए और उनकी मृत्यु हो गयी। इस समय भी उन्होंने विग्रहो को पकडे रखा और उन्हें नष्ट होने से बचाया।
इस मंदिर में लोकचर्या की भी तीर्थ स्थान है पर इस मंदिर को तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है।
अधिक जानकारी के लिए संपर्क करे - वीर राघव भट्टर 94426 22181
translated by Ananya
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