श्री शिवं सार - जीवनी
श्री
सदाशिव शास्त्रीगल (जिन्हे शिवं सार के नाम से
भी जाना जाता है ), कांची के परमाचार्य श्री
चंद्रशेखरेन्द्र सरस्वती स्वामिगल के छोटे भाई
थे। शिवं सार एक योगी का
जीवन जीते थे। वें
कभी कभी खाते और ज्यादातर पानी
भी ग्रहण नहीं करते। उनकी
जीवनी - "शिवा सागरातील सिला अलैगल" में लिखी हुई है। इस
पुस्तक की कड़ी नीचे
दी गयी है -
सार
की सबसे महत्वपूर्ण रचना - येन्निपाडिगलील मंथ्रगल है। इस रचना में
वें लोगो को पाप और
पुण्य का अंतर समझते
हुए जीवन में ज्ञान और शांति से
रहने का पाठ पढ़ाते
है। इस किताब में
वें भारत के इतिहास के
बारे में बताते है। साथ
वें इजिप्ट ,इटली , बुल्गारिया और ग्रीस इत्यादि
का इतिहास बताते है और इन
देशो में स्थित देवता और अनुष्ठान के
बारे में बताते है।
श्री
शिवं सार अनेक पौराणिक रहस्यवादी योगी और राजाओ के
बारे में बताते है। वें हिन्दू धर्म और मूर्तिपूजा सम्बंधित
और धर्मो में सम्बन्ध की कड़ियाँ ढूंढ़ते
है। एक ऐसे इंसान
जिन्होंने कभी भारत के बहार भ्रमण
नहीं किया है ; उनके कल्पना की शक्ति अपूर्वा
थी। कुछ
आश्चर्यचकित होने वाली बाते भी उन्होंने लिखी।
उन्होंने
काफी राजाओं तथा संतो/योगियों के बारे में
रचनायें लिखी -
इजिप्ट
के राजा शबका
बॉसिस
और फिलमोन
वेस्टल्स
चंगेज़
खान
लयकृगुस
रोमन
एत्रुकंस
अब्राहम
जॉन
और बोगोमिलेस
सोलोन
और क्रोएसुस
साइरस
हेरोडोटस
जानूस
सोक्रेटस
डिओजेनेस
डेमोक्रिटिस
एपीमेनिडेस
एम्पिडोक्लेस
नेबूचडरेजेर
और
भारतीय संत जैसे -
श्री
सदाशिव ब्रह्मेन्द्र
पत्तिनहार
और बद्रकीरियर
श्री
नारायण तीर्थ
श्री
तीर्थ नारायणर - ये
संत श्री नारायण तीर्थ से अलग है
पर इनकी जीवनी लुप्त हो गई है
श्री
चिन्नास्वामी इयेंगर (चिन्तन समियर) - इनका चित्र नीचे दिया गया है और उनकी
महासमाधि , सन्नानल्लूर, तिरुवरुर में स्थित है जो तमिल
नाडु में है|
![]() |
श्री चिन्नन स्वामिगल |
मणिक्कवसागर
तिरुमंगै
अलवार
श्री
भगवन नामा बोडेंड्रल
नंदनार
तोंडारडीपोडी
अलवार
कराईकल
अम्मइयार
कन्नपा
नयनार
त्यागराजार
मनुनीथी
चोज़न
नर्मदा
प्रकाशन की यह पुस्तक
अध्यंतिक संदेशो में रूचि रखने वाले लोगो के लिए पढ़ना
अनिवार्य है।
प्रकाशक
का दूरध्वनि क्रमांक - 044 24343793 /
24336313
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श्री शिवं सार |
कुमुदाम
जोथीदं से प्राप्त एक
लेख :-
यह
एक तमिल भाषा में श्री सुन्दर कुमार के व्याख्या
है जिसमे उन्होंने श्री ब्रह्मेन्द्र और शिवं सार बारे
में पहले और दूसरे अध्याय
में बताया है. वें कहते है की श्री
ब्रह्मेन्द्र के आराधना हर जाये
जहा उन्होंने महा मसमाधि ली है। कराची के बारे पर उन्होंने कहा
की अगर ब्रह्मेन्द्र चाहे तो दोनों देश
एकत्र हो सकते है।
भक्तो से अनुरोध
ब्रह्मेन्द्र करे
की वें कराची में समाधी बताये
और दोनों देशो भाव
को मिटायें
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