एक मुस्लमान राजा को अर्पित पूजा - थिरूवत्तरु , केरेला


श्री आदि केशव पेरुमल विष्णु मंदिर, थीरवत्तरु में केरल-तमिल नाडु सीमा से किमी उत्तर पूर्व परमर्थनदम शहर में  स्थित है। यह स्थान नागरकोइल से ३० किमी उत्तर पश्चिम पर है।  यह मंदिर ४००० साल पुराण और .  एकर बड़ा है।  यह मंदिर तीन और से नदियों से घिरा है - कोथाइ , परली और ताम्रपर्णी , परलियर नदी यहाँ से छूटकर एक द्वीप का निर्माण करती है जिसका नाम वत्तरु है और इसी वजक से आदि केशव पेरुमल मंदिर के स्थान को थिरूवत्तरु कहते है।
देवता की मूर्ति यहाँ २२ फुट और १६००८ शलिग्रामो से बनायीं हुई है।  देवता यहाँ शयन अवस्था में है।  पूर्ण दर्शन के लिए देवता को दरवाज़ों से देखना पड़ता है और १८ सीढ़िया चढ़ने के उपरांत दर्शन प्राप्त होते है। इस मंदिर की एक विशेष बात यह भी है की दो दिन गोधूलि बेला में सूर्य की किरणे भगवन के ऊपर पड़ती है जैसे भगवन की वंदना कर रहे हो भगवन शिव भी आदि केशव पेरुमल के पास ही स्थित है। आदि केशव पेरुमलतिरुवनंतपुरम के अनन्त पद्मनाभ स्वंय के बड़े भाई है।  इन्होने असुर - केसन और केसी को मार कर धर्म की स्थापना की।
इस मंदिर की वास्तुकला का उपयोग श्री अनन्त पद्मनाभ मंदिर के निर्माण में भी किया गया है।  करीबन ५० शिलालेख इस मंदिर के अंदर है जो तमिल तथा संस्कृत में है।  इनके अलावा भी शिल्पकला के सुन्दर नमूने इस मंदिर में है। हर एक मूर्ति अपने आप में अनोखी है। मंदिर के घेरे में असल आकार की विष्णु, लक्ष्मण, इंद्रजीत , वेणुगोपाल , नटराज, पारवती, तिरुवंबड़ी , कृष्णा आदि केशव ,वेंकटचलपति और महालक्ष्मी की मूर्तियां है मुख्या कक्षा में एक अकेले पत्थर से बनाया हुआ कक्ष है जो १८ फुट चौड़ाई और फुट ऊंचाई में है।  यह १२ सदी में बना है।
श्री अनंत पद्मनाभ स्वामी मंदिर वास्तुकला थिरुवत्तार केरल
वैकुण्ठ एकादशी का त्यौहार यहाँ मनाया जाता है पाल पायसम (खीर), अवियल और अप्पम प्रसाद के रूप में परोसे जाते है।
शिवालय दौड़ - इस मंदिर के पास १२ शिव मंदिर है जो इस मंदिर की गाथा से जुड़े है

तिरुमला
थिक्कुरुस्सी
थ्रुप्पाराप्पू
थिरुनंदीकररा
पोनमाना
पन्नीपकम्
कलक्कुलम
मेलनकोडु
थिरुविदाईकोडु
थिरुविथमकोड़े
थिरुपंरिकोडे
थिरुनाथलाम
यह दौड़ महाशिवरात्रि के दिन की जाती है. शिव भक्त पहले १२ शिवालय और फिर इस मंदिर का दर्शन कर विष्णु तथा शिव भक्ति का उदहारण देते है।
थिरु अल्लाह पूजा -
१७४० ईसवी में नवाब के लोगो ने सोने से बने इस देवता की मूर्ति को ले गए।  इस दौरान नवाब की पत्नी रोग ग्रस्त थी।  वैद्य कुछ नहीं कर पा रहे थे।  भगवन ने मंदिर के पुरोहित के स्वप्ना में दर्शन देकर कहा की अगर मूर्ति देव स्थान पर वापस जाये तो नवाब की पत्नी सकुशल हो उठेंगी।  पुरोहित ने नवाब से यह बात कही और उन्हें मंदिर में देवता की मूर्ति वापस कर देने के बारे में समझाया।  जैसे ही मूर्ति अपने स्थान पर आई, उनकी पत्नी का रोग स्वस्थ हो उठा।  नवाब ने पश्चाताप किया और अपने आभार के रूप में देवता को सोने का एक तकिया , मुकुट, थाली और प्याला अर्पण किया।
एक विशेष पूजा जिसमे देवता को एक साफा  पहनाया  जाती है जो बिलकुल मुसलमान धर्म के शीश भूषण (टोपी) की तरह होती है।  यह प्रथा नवाब ने शुरू की थी और आज तक चलती आई है। नवाब के पूजा की सामग्री भी तक थिरु अल्लाह पूजा में उपयोग की जाती है।  यह पूजा वर्ष में एक बार होती है और २१ दिन तक चलती है।  यह पूजा थिरु अल्लाह मंडप में होती है। 

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