मंदिर जहा ओणम की शुरुआत हुई - थ्रिकटकारा

मंदिर जहा ओणम की शुरुआत हुई - थ्रिकटकारा

यह मंदिर केरल के कोचीन के पास थ्रिकटकारा में स्थित है।  यह मंदिर  दिव्या देसं में से है और १३ वि सदी में चेरा राजा कुलशेखर वर्मा ने बनवाया था।  "संगम कतृतीकल " - तमिल भाषा में एक रचना में इस मंदिर के रूप और भव्यता को दर्शाया है।  इस मंदिर के गुणगान में अनेक भजन (तमिल वैष्णव अलवार जैसे नम्माल्वार  रचनायें) भी लिखे  गए है।  पुराणो के एक महान राजा महाबली की यह राजधानी रह चुकी है।

पुराणो के अनुसार देव वामन की बोहोत सारी विशेषतायें है।  इस मंदिर में १० वि सदी से लिखे गए शिलालेख है और केरल के किसी भी मंदिर से ज्यादा शिलालेख यहाँ पर है।  इस मंदिर की वास्तुशैली में अनेको राज्यों तथा शैलीओ के छाप दिखाई देते है।  यह मंदिर काफी सुन्दर और भव्य है।  एक विशेष बात यह है की यह मंदिर गोलाकार रूप में है।  देव यहाँ वामन रूप में विराजमान है और यह १० अवतारों में से पांचवा अवतार है।

भागवत पुराण यह कहता है की श्री विष्णु जगत में वामन अवतार में ए ताकि वे देवेन्द्र का राज जो महाबली छीन चुके थे उन्हें लौटा पाये।  महाबली एक नेक तथा बलशाली असुर राजा थे।  वे प्रह्लाद के पुत्र और हिरण्यकश्यप के पौत्र थे।  उन्होंने अनेको यज्ञ और ध्यान कर ३ लोको में विजय प्राप्त की।  वे अपनी दरियादिली और दयालु स्वाभाव के लिए भी प्रसिद्ध थे और उनसे किसीने कुछ माँगा तो वो खली हाथ नहीं लौटाते थे।

श्री विष्णु ने महाबली की परीक्षा लेने हेतु वामन वेश एक लकड़ी से बना छाता लेकर में धरती पर आये।  उन्होंने महाबली से ३ कदम चल सके इतनी धरती मांगी।  महाबली को आश्चर्य हुआ और अपने गुरु शुक्राचार्य के ना कहने पर भी वामन की बात मान ली।  शुक्राचार्य ये जान गए थे की यह कोई वामन नहीं विष्णु है और उन्होंने राजा महाबली को अपनी बात से फेर जाने के लिए कहा परन्तु महाबली नहीं माने।  महाबली ने कहा अगर सचमे श्री विष्णु उनसे कुछ मांगने आये  है तो इससे शुभ बात कोई हो ही नहीं सकती थी।  उन्होंने ख़ुशी कृषि ३ कदमो से नापी जाने वाली धरती देने के लिए हाँ कर दी।  इस समय श्री विष्णु अपने विश्वरूप में आये और एक कदम में धरती से स्वर्ग और दूसरे में धरती से पाताललोक नाप लिया।  श्री विष्णु ने महाबली को पाताललोक सँभालने की आज्ञा दी।  यह माना जाता है की इस मंदिर के स्थान पर ही महाबली को  आशीष मिला था।  थ्रिकटकारा मलयालम के तीन शब्दों से उत्पन्न हुआ है "थिरु" "काल"और "कारा" जिसका " पवन चरणो का स्थान "। महाबली ने श्री विष्णु से आशीर्वाद के रूप में यह माँगा की उनकी छाया इस स्थान पर सदैव पड़ती रहे और इसीलिए इस मंदिर में एक स्वयंभू विष्णु प्रतिमा प्रकट हुई।

भक्त यहाँ आनेपर पहले भगवन शिव (थेक्कुमकारा थेवर ) की पूजा करते है और फिर वामन देव की।  इन दोनों के अलग अलग श्रीकोइल है।  शस्त और लक्ष्मी देवी के भी यहाँ तीर्थस्थान है।  वामन देव की ५ पूजाये होती है - उषापूजा , ईथरुपूजा और ३ शिवलिया - एथ्रुथा , उषा और अथज़्ह।
                       
यह भी माना जाता है की इस मंदिर के शिविंग की पूजा स्वयं महाबली करते थे।  यह शिवलिंग वामन के दक्षिण की और स्थित है तथा शिवजी के सामने की महाबली का आसन है।

 इस मंदिर का मुख्य समारोह ओणम  है और १० दिनों तक इसे मनाया जाता है।  यह स्थान महाबली की राजधानी थी और इसे ओणम का जन्मस्थान भी मानते है।  ओणम अगस्त -सितम्बर (मलयालम : चिंगम)  मनाया जाता है।   इस समय वामन की प्रतिमा स्थापित की जाती  है। यहाँ वामन देव को ओनाथाप्पन भी कहते है। इस समारोह के समय भोज बनाया जाता है जिसे ओणम साद्य  कहते है। इस भोज में अलग अलग धर्मो के लोग भाग लेते है।

यह उत्सव  कोडियेट्टु में शुरू होकर थिरुवोणम समाप्त होता है। थिरुवोणम वामन देव का  जन्म दिन है। जो भक्त मंदिर नहीं जा पाते वे अपने घरो में  फूलों की सजावट (पूकलम ) बनाकर और विशेष नैवेद्य बनाकर मनाते है।


इस समय मंदिर में  कथकली , ओट्टमथुल्लल , चक्र कूथु पातकं और अन्य नृत्य और संगीत जैसे पंचवाद्यम् और  थयम्बका के कार्यक्रम होते है।  इन १० दिनों में "चारथु " और "पकलपूराम " जैसे पारम्परिक क्रियाएँ की जाती है। चारथु - वामदेव को चन्दन के आभूषणो से सजाया जाता है। प्रतिदिन विष्णु  दसो अवतारों - मत्स्य कूर्म वराह नरसिंह त्रिवक्रमा परशुराम राम बलराम कृष्णा और कल्कि। पकलपूराम एक  शोभा यात्रा है जो ९ वे दिन पर होती है।

 ओणम केरल का सबसे बड़ा त्यौहार है और यह महाबली के धरती पर पुनरागमन का चिन्ह है।  ओणम सद्य तथा पूकलम से लोग महाबली के लौटने की प्रार्थना करते है।  इस समय भक्तो  वामन मूर्ति मंदिर जाना बोहोत ही शांति प्रदान करने वाला योग होता है।

translated by Ananya

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