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अष्टविनायक मंदिर – महाराष्ट्र

अष्टविनायक  मंदिर – महाराष्ट्र 

महाराष्ट्र में स्थित अष्टविनायक मंदिर गणपति के ८ पावन तीर्थ स्थलों में से है।  इन आठ मंदिरो में से ६ पुणे जिले में और २ रायगढ़ में है।  विनायक गणपति का दूसरा नाम है।  गणपति या श्री विनायक बुद्धि और विद्या के आदि देव है।  गणपति “प्रथम आराध्य ” भी है जिसका मतलब यह है की किसी भी पूजा या यज्ञ के दौरान सबसे पहले पूजा उनकी की जाती है।  महाराष्ट्र में चारो और गणेश चतुर्थी बड़े धूम धाम से मनाई जाती है।  भक्तो का मानना है की हर किसी को अपने जीवन काल में एक बार अष्टविनायक की यात्रा अवश्य करनी चाहिए। 

मंदिरो की विशेषताए – इन मंदिरो में हर एक मूर्ती स्वयंभू है। हलाकि ये बोहोत बड़े या भव्य मूर्तिया नहीं है परन्तु हर एक मूर्ती की अपनी एक विशेषता है।  सभी मूर्तियां दिखने में अलग विशेष रूप से इनके सूँड़ का घुमाव अलग अलग दिशा में है।  हर एक मंदिर में गणपति के अलग नाम है – मोरेश्वर, महागणपति , चिंतामणि ,गिरिजात्मक , विघ्नेश्वर , सिद्धिविनायक, बल्लालेश्वर और वरदविनायक।  ये मंदिर मोरगाओं, रांझनगाव , थेऊर , लेन्याद्री , ओजार , सिद्धटेक , पाली (रायगढ़) और महाड (रायगढ़ ) में है।  अष्टविनायक यात्रा पूरी करने हेतु इन मंदिरो के  एक विशेष क्रम में दर्शन करने पड़ते है –

1. मोरगाओं 
2. सिद्धटेक
3. पाली 
4. महाड 
5. थेऊर  
6. लेन्याद्री 
7. ओजार 
8. रांझनगाव 

9. और फिर से मोरगाओं के मोरेश्वर  – यात्रा पूर्ण करने के लिए पहले गणपति के फिर से दर्शन लेना आवश्यक होता है। .  

सभी मंदिरो की विशेषताए निम्नलिखित है –

१. श्री मयूरेश्वर , मोरगाओं – यह मंदिर पुणे से करीब ६० किलोमीटर पर है।  इस मंदिर का नाम मयूर या मोर के नाम पर पड़ा।  ऐसा माना जाता है की सिंधु नमक असुर का विनाश करने गणपति मोर के वहां पर आये थे। 

यह स्थान कारहा नदी के तट पर है।  यहाँ गणपति की मूर्ती के तीन आँखे है तथा सूँड़ बायीं तरफ मुड़ी हुई है।  इस तरह का घुमाव यश प्राप्ति करवाता है।  यहाँ ये अपने सहचरी ऋद्धि तथा सिद्धि के साथ विराजमान है।  इस मंदिर को बहमनी राज के दौरान बनाया गया था।  इस मंदिर की वास्तुशैली पर मुग़ल प्रभाव है। 

२. श्री सिद्धिविनायक, सिद्धटेक – यह मंदिर अहमदनगर जिला , ख़रीद १०० किमी पुणे से, पुणे-सोलापूर मार्ग पर स्थित है।  इसे पेशवा काल में बनवाया गया।  इस मंदिर का मुख्य मंडप, महारानी अहिल्याबाई होल्कर, जो इंदौर की महारानी थी , इन्होने बनवाया। यह गाव भीम नदी के किनारे बसा है। 

माना जाता है की श्री विष्णु को इसी सिद्धटेक के पहाड़ो में सिद्धि प्राप्त  हुई ताकि वे मधु और कैटाब जैसे दानवो का विनाश कर सके।  इस मंदिर की मूर्ती की सूँड़ दाहिने तरफ मुड़ी हुई है और इन ८ मंदिरो में से सिर्फ यही एक मंदिर ऐसा है।  इस तरफ का घुमन शक्ति दर्शाता है।  श्री गणेश के अलावा यहाँ शिव जी और देवी शिवाय के भी तीर्थ स्थान है। 

३. श्री बल्लालेश्वर,पाली – पाली गाव , रायगढ़ जिले में स्थित है।  यह मंदिर सारसगढ़ किले और अम्बा नदी के बीचो बीच है।  इस मंदिर को पेशवाई काल में बनवाया गया था। 

स्थानीय लोग यह मानते है की एक तरुण युवक, जिसका नाम बल्लाल था, गणपति की बोहोत आराधना करता था।  गणपति ने ब्राह्मण वेश में उसकी सहायता की।  आज तक गणपति की मूर्ती यहाँ ब्राह्मण वेश धारण करती है।  यह एकमेव ऐसा मंदिर है जिसमे भक्त के नाम से भगवान जाने जाते है। 

इस मंदिर की सबसे अनूठी बात यह है की सूर्योदय के समय, सूर्य की किरणे ठीक मूर्ती पर आ पड़ती है और मूर्ती की आँखों में लगे रत्न चमक उठते है 

४. श्री वरद विनायक, महाड – महाड  गाव , खोपोली के पास रायगढ़ जिले में है।  मराठी में वरद विनायक का अर्थ है “वरदान देने वाले ” । इस मंदिर में स्थित प्रतिमा सं १६९० ईस्वी में पास के एक तालाब में प्राप्त हुई यह मंदिर सूबेदार रामजी महादेव ने १७२५ में बनवाया।  इस मंदिर में एक दीपक है जिसे नंददीप कहते है।  यह दीपक सं १८९२ से नित जलता आ रहा है। 

इस मंदिर की प्रतिमा तथा परिसर प्राचीन है। यह एकमेव अष्टविनायक मंदिर है जहा भक्त खुप देवता के समीप जाकर पूजा अर्चना कर सकते है।  मुख्य कक्ष में दो मूर्तिया है।  एक श्री वरद विनायक की जिनकी सूँड़ बायीं ओर है और एक संगमरमर से बानी मूर्ती जिसकी सूँड़ दाहिनी ओर है

५. श्री चिंतामणि , थेऊर – यह गाव पुणे से करीब २५ किमी पर है।  थेऊर का अष्टविनायक मंदिर ३ नदियों मूला , मुठ और भीम के सम्प्रवाह के पास स्थित है।  इस मंदिर को माधवराओ पेशवा ने बनवाया था। 

ऐतिहासिक कथाओ के अनुसार ऋषि कपिल के पास एक चिंतामणि पत्थर था जिसे गुण , नाम के एक लालची राजकुमार ने  हर लिया था।  जब गणपति ऋषि कपिल को वो पत्थर लौटने आये तब ऋषि के वह चिंतामणि पत्थर गणपति के गले में दाल का उन्हें अर्पित कर दिया। इसीलिए गणेश जी यहाँ चिंतामणि कहलाते है।  भक्तो या यह भी मानना है की वे चिंता हर सकते है और मानसिक शांति प्रदान करते है । 

इस मंदिर के मुख्य कक्ष में एक काले पत्थर का बना फव्वारा है।  गपति के अलावा यहाँ शिव जी , विष्णु-लक्ष्मी तथा हनुमान के भी तीर्थ स्थल है। 

६. श्री गिरिजात्मजा , लेन्याद्री – लेन्याद्री के पहाड़ ,  किलोमीटर की दूरी पर।   स्थान कुकड़ी नदी के पास है और इस मंदिर से पशुपति नदी के दर्शन हो सकते है। 

गिरिजात्मजा का अर्थ है गिरिजा का पुत्र।  गिरिजा , देवी पारवती का दूसरा नाम है।  कहते है देवी पारवती ने १२ वर्ष पुत्र प्राप्ति के लिए यहाँ तपस्या की। 

यह मंदिर गुफाओ के बीच स्थित है।  इस मंदिर तक पोहोचणे के लिए ३०० सीढ़िया चढ़नी पड़ती है। मंदिर को एक ही पत्थर से निर्मित किया गया है।  गणपति की मूर्ती भी गुफा के एक दिवार पर बनवायी गयी है। 

७. श्री विघ्नेश्वर , ओजार – नारायणगाओं , जुन्नर तालुका में स्थित ओजार , कुकड़ी नदी के तट पर है।  यह पुणे से ८० किमी पर पुणे-नाशिक राजमार्ग पर स्थित है। 

माना जाता है जब विघ्नासुर , ऋषिओ को कष्ट दे रहा था तब श्री गणेश ने विघ्नासुर पर विजय प्राप्त की।  असुर ने माफ़ी मांगते हुए क्षमा याचना की।  तब गणपति ने उसे यह कहते छोड़ दिया की जहा गणेश पूजा हो रही हो वह असुर  कभी नहीं जा पायेगा।  विघ्नासुर ने तब प्रभु से अपना नाम अपनाने की मांग की।  इसीलिए गणपति यहाँ विघ्नेश्वर के नाम से जाने जाते है। 

मराठी में विघ्न का अर्थ है दिक्कते (मुश्किलें) ; गणपति यहाँ विघ्न हारते है और भक्तो की मुश्किलें दूर करते है।  

यह मंदिर चारो ओर से भव्य दीवारो से घिरा है तथा इस मंदिर का गोपुर सोने का है।  श्री गणेश यहाँ पूर्व मुखी होकर ऋद्धि सिद्धि के साथ विराजमान है। 

८. श्री महागणपति , रानझनगाव – रांझन , पुणे के पास एक छोटासा गाव है।  इस मंदिर को माधवराओ पेशवा ने बनवाया था।  इस मंदिर में महागणपति का स्वरुप है जो गणेश जी के सबसे शक्तिशाली स्वरुप है।  इस मूर्ती के १० सूँड़ और २० हाथ है। 

माना जाता है की त्रिपुरासुर से युद्ध करने के ;पहले शिव जी ने महा गणपति की आराधना की थी।  इस स्थान को त्रिपुररिवदे महागणपति भी कहते है। 

दक्षिणायन के समय सूर्य की किरणे महागणपति की प्रतिमा पर पड़ती है।  यह मंदिर पूर्व मुखी है और इसके सामने भव्य प्रवेश द्वार है।  इस प्रवेश द्वार पर जय-विजय (वैकुण्ठ के द्वारपाल ) की प्रतिमाये है। 

मानचित्र  – इस पूरी अष्टविनायक यात्रा को समझने के लिए नीचे दिए संकेत स्थल पर क्लिक करे –

http://www.mapsofindia.com/maps/maharashtra/ashtavinayak-yatra-route.html

दिशा निर्देश  – श्री अष्टविनायक यात्रा या पर्यटन निजी टूर ऑपरेटरों द्वारा चलाए जा रहे हैं । इन के अलावा, पुणे और महाराष्ट्र के अन्य प्रमुख शहरों से चलने वाले विशेष बसें हैं।

रहने की योजना  – होटल , लॉज , धर्मशालाओं या एमटीडीसी अतिथि गृह आसानी से उपलब्ध हैं । ज्यादातर टूर ऑपरेटरों को इसके बारे में जानकारी उपलब्ध होती है।

Location: Maharashtra, India

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